Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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ज्ञानयुक्त, मनवमे गुप्त, दानमां तत्पर अने प्रथम व्रतमां शुद्ध तथा जिनविनयमा रहेता 2
O क्रोधने जीतता एवा मुनीयोने (हुं) वांदुं बुं ॥१॥
॥४७॥
शीलांगादि रथसंग्रह. ॥७॥
NAGABRDara
. १ मा कामावस्थारथना चित्रमा आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. जे-जेओ , वपु-शरीरनो
| पुव्वरइ-पुर्वे सुख भोगवेलुं ते | अंग-स्वीना शरीर(मां) नो-नहि सक्कार-सत्कार
सरण-याद करवू रइ-रति, मिति(मां). करन्ति-करेछे सोह-शोभा
विलासे-सुखने निरीहगे-इहाविनाना कारन्ति-करावे छे देह-शरीरनी
रइए-रतिवाळो
पसंत-प्रशांत अणुमन्नन्ति-अनुमोदेछे निख्खिवण-निक्षेप न-नहि
देहे-देहवाळा मोहं-मोहने विरमणे-विरमणने विषे, । इथ्यि-स्त्री(नो)
अमदे-मदविनाना मणुस्सिथ्थि-मनुष्यनी स्त्री(ना) विराम पाम्याछे तेमने विष चिन्ते-चिंता करनारा देहग्गिणो-देहने विषे जे संग-संगने विस्सारिअ-विसायी छे मुणी-मुनीोने ..
अनि नथी तिरिइथ्थि-तिर्यचनी स्त्रीने इथ्थि-स्त्री.
वंदे-वांदुर्छ
अमुच्छ-मुर्छा रहित देविथ्थि-देवांगना अंगे-अंगोने
थ्थी-स्त्री
मुत्ति-निर्लोभतावाला रुविथ्थि-रुपवाळी स्त्री
गय-गयो छे सयल-सकळ
देस-स्वीना शरीरमा अमुक सोइंद्रि-श्रोतइंदि विभूसण-शोभा
मय-मद अमुक भागने जोवानी
मज्जे-मद्य चख्खिंदि-चक्षुइंद्रि चयए-त्याग करनार
. इच्छा रहित
विसय-विषय घाणिन्दि-घ्राणइंद्रि सराए-स्मरणे
निरीहगे-निरिच्छक
परिसग्गे-संसर्ग जेमनो एवा जिभ्भिन्दि-रसइंद्रि जण-माणस
अ-नहि
अपाण-आत्माने । फासिन्दि-स्पर्शइंद्रि हासे-होसिमां
दीह-दीर्घ, लांबा संवहगे-सम्यक् प्रकारे वहन वजिअ-त्याग को छे संसणे-प्रशंसा करवी ते - उसासगे-उच्छवासवान
करनारा
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