Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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॥४६॥
तईय-त्रीजा चेई-चैत्य
सम्म-सम्यक्त्व. हास-हास्य चउथ्थ-चोया सुअ-श्रुत सिद्धांत कोह-क्रोध
रइ-रति पंचम-पाचमा धम्म धर्म जयंतो-जीततो
अरइ-अरति जिण-जीनेश्वर भगवानना मुणि-मुनि
वंदे-चांदुर्छ विणए-विनयमां गुरु-आचार्य
सोग-शोक
माण-मान बट्टतो-वर्ततो उवज्झाय-उपाध्याय - माया-कपट
भय-भय सिद्ध-सिद्धना संघ-चतुर्विध संघ लोह-लोभ
कुच्छ-दुगंच्छा - २० मा धर्मागरथना चित्र बहारनी गाथाना बुदा शब्दना अर्थ. नाण-ज्ञान दाणे-दानने विषे पढम-पेहेला
| विणए-विनयने विषे जुओ-युक्त
जुत्तों-सहित, युक्त वयसुद्धो-व्रते करीने शुद्ध(१) बटुंतो-वर्ततो मणगुत्तो-मनगुप्तिवाळो य-वळी
जिण-जीनना
जयंतो-जीततो
शीलांगादि रथसंग्रह.॥४६॥
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॥श्री धर्मागरथ ॥ २० ॥ नाणजुओ मणगुत्तो, दाणेजुत्तोअ पढमवय सुद्धो॥ जिणविणए वर्सेतो, कोह जयंतो मुणीवंदे ॥१॥
झान युतो मनोगुप्तो, दाने युक्तश्च प्रथम व्रत शुभः ॥ जिनविनये वर्तमानान् क्रोधं जयतो मुनीन्वन्दे ॥१॥

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