Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 66
________________ ॥४ ॥ २७ मा ज्ञानदर्शन चारित्ररथना चित्र बहारनी गाथाना बुटा शब्दानो अर्थ.॥ जे-जेभो लीणा-लीन | रुवज्झणं-रुपस्थ ध्यान | आसुरे-आसुर नाणचित्र-ज्ञानांचित | दप्प-दर्पने आलीगो-लीन | आवइ-वारंवार आवर्तन ज्ञानबडे सहित परिहरंतो-त्याग करतो रुवातीतं-रुपातीतने मुअ-मूत्र पुणो-वळी मणसा-मनवडे (एप्त) खंतिखम-क्षमाए करीने युक्त कम्पखयं-कर्मक्षयने संकिए-शंकित पिंडथ्य-पिंडस्थ साहूणं-साधुओने कुणइ-करेछे सहसागारो-सहसात्कार; एकदम झाण-ध्यान वंदे-चांदुर्छ (१) दप्प-अहंकार . भये-भय पढम-प्रथम अंचिय-युक्त | पमाय-प्रमाद पओसे-प्रदोष वय-व्रत(मा) पदथ्य-पदस्थ अणाभोग-अजाणपणे अनाभोगे विमसो-विमर्श, विचार (३) शीखांगादि रथसंग्रह. ॥ ४२ ॥ PareBOROGGGC GEOGRABODOBRAR - - ॥ श्री ज्ञानदर्शन चारित्ररथ ॥ १७ ॥ जे नाणंचिअ मणसा, पिंडथ्थज्झाण पढमवयलीणा॥ | दप्पं च परिहरंतो. खतिखमं साहूणं वंदे ॥१॥ ये झानमेव मनसा, पिंमस्थध्यान प्रथमव्रतलीनः॥ - दर्प च परिदरतः दान्ति दमान् साधून वन्दे ॥ १॥ जे ज्ञानी डे अने मनवमे पिंमस्थादि चार ध्यान अने प्रथम व्रतमां लीन बे, दर्पनो जेणे त्याग कयों ने एवा क्षमा राखवाने समर्थ साधूर्जने ९ वांउंडं ॥१॥ -

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