Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 64
________________ ||॥४०॥ ते-तेओने | दठु-जोवाने. मिच्छइ-इच्छे | जरे-ताव आवे मुणी-मुनिओने दीहं-दीर्घ दहि-दाह थाय | वंदे-हुं वांदुर्छ (१) | नीससइ-निसासो ले । भत्त-आहारनी | चिंतेइ-चितवन करे तह-तेमज अरोअ-अरुची . मुच्छा-मूर्छा .. उम्माय-उन्माद. . पाणइ-माणनो संदेह | मरणं-मरण (२) ! शीखांगादि रथसंग्रह. ॥४०॥ ॥ श्री रागत्रिकरथ ॥१७॥ जे कामराग रहिआ, मणसा देवेसु सदविसयंमि ॥ चिन्ताऽवथ्थं ण गया, खंति जुआ ते मुणी वन्दे॥१॥ ये कामराग रहिता, मनसा देवेसु शब्द विषये ॥ PL .. चिन्तावस्थां न गता दान्ति युतान् तान् मुनीन् वन्दे ॥१॥ जे काम रागथी रहित, देवादि नवमां, शब्दादि विषयोमां, मनवमे चिन्तावस्थाने नथी|| है || पाम्या तेवा दमावाळा मुनिने अनिवंऽडं ॥१॥ चिंतेइ ठुमिच्छइ, दीहं नीससइ तह जरे दाहे ॥ भत्त अरोअग मुच्छा, उम्मायं पाउणइ मरणं ॥२॥ GRangaareenGOMANOGREGree RBRBRBRBRDonORNORC

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