Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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आकंपइत्ता अणुमाणइत्ता जं दि8 बायरं व सुहुमं वा.॥ छिन्न सहाउलं बहु, जण अवत्त तस्सवि॥२॥
१७ मा रागत्रिकरथना चित्रमा आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ.
शीखांगादि रथसंग्रह. ॥३५॥
जे-जेओ विसयमि-विषयने विषे जस्स-यश
मुनी-मुनीओने कामराग-विषय भोगना रा- | रुव-रुप
दहणा शरीरना अंगने बाळे ते वंदे-हुं वांदुर्छ गथी रस-रसना
अरुचि-अणगमो
अज्जव-सरळपणुं रहिआ-रहित गंध-गंध महामुच्छ-महामुर्छा
समद्दवा-मार्दव सहित नेह-स्नेह फास-स्पर्श उम्मच-उन्मत्त
मुत्ति-निळेभता दिठि-दृष्टि . चिंता-चिंता
तव-तप देवेसु-देवोमां | अवथ्थं-अवस्थाने
पाण-माण
संजम-चारित्र मणुएसु-मनुष्योमा ण-नथी . संदेहं-संदेहने
सच्च-सत्य . तिरिएसु-तिर्यंचोमा गया-पायां
मरण-मरण
सोअ-शौच नरएसु-नरकने विषे दसण-दर्शन
खंति-क्षमा
अकिंचणा-किंचन रहित सद्द-शब्दना | नीसासा-निश्वास जुभा-युक्त
बंभ-ब्रह्मचर्य १७ मा रागत्रिकरथनी बहारनी गाथार्जना बुटा शब्दना अर्थ. जे-जेभो |मणसा-मनवडे
| विसयंमि-विषयमा | गया-पाम्या कामराग-काम रागवडे | देवेसु-देवोने विषे चिन्तावथ्थं-चिंतावस्थाने खंतिजुआ-क्षमाए करीने युरहिआ-रहित-वगरना | सह-शब्द
ण-नदि
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