Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 45
________________ ॥ शीलांगादि रथसंग्रह ॥१॥ फासिंदिय-स्पर्श इंद्रिय (ना'; बेईदिअ-वेइंद्रिय (ना) । लंघेइ-ओळधेछे समणुभ्भवइ-सम्यकप्रकारे अ-या चामडीना. तेइंदिय-तेइंद्रिय (ना) कम्मस-कर्म, पाप नुभवे जो-जे चरिंदिय-चौरिंद्रियना सवग्ग-वर्ग-समुह . सुगई-सारी गति हणइ-मारे-हणे पंचिंदिय-पंचेंद्रियना परचेइ-प्रवर्त पाउए-पामे पुढवि-पृथ्वीकायना अजीवे-अजीवना दीह-दीर्घ भावारिसो-रागदेश, भाव वैजीए-जीवोने सो-ते ठिई-स्थिति आउ-अपकाय (ना) संसार-संसारने तीन्व-तीत्र तेउ-अग्निना, तेउकायना परिभ्भमइ-भमेछे रस-रस निथ्थरइ-काढ वाउ-वाउकायना भवाडवी-भव अटवी बहुपए-घणा स्थानको प्रत्ये सिद्धि-सिदिने वणस्सइ-वनस्पति (ना) | न-न | दंदोलिं-समुदाय सुई-मुख ए मा संसाररथनी बहारनी गाथाना बुटा शब्दोना अर्थ.॥ उदिसि-उर्ध्व दिसि हे-हेतु दीहं-दीर्घ पुरिस-पुरुष - जो हणइ-जे हणे ठिइ-स्थिति दंदोलि-समुदाय जीवो-जीव | भवअडवी-भव अटवी (ने) तिव्व-तित्र सुगइ-मुगतिने कोही-क्रोधी भावारि-भावशत्रु कम्मस-कर्मः पाप बहुपए-घणा स्थानक प्रत्ये सिद्धि-मोक्ष सोइंदियस्स-श्रोतइंद्रियना | वगं-समुह सो-ते | सुई-मुख ॥श्री संसाररथ ॥ ए॥ D ROGGARBRBRBRBG उढदिसि पुरिसजीवो, कोही सोइंदियस्स सुहहेउं॥ जो हणइ पुढवि जीवे, सो संसारं परिभ्भमइ ॥१॥

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