Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 53
________________ ॥श्णा ___ आगमने धरनार, श्रुतगुणने धरनार, आज्ञाधरनार, धारणा धरनार, ब्रह्मचर्य धरनार,अथवा ) || जीतव्यवहार धरनार, केवळझान धरनार, मनःपर्यवझानवाळो अवधिज्ञानवाळो चौद पूर्वधर | दशपूर्वधर अने नव पूर्वधर . ४ (पागंतर) आगम श्रुतागुणाऽऽज्ञाधारणा ब्रह्मा च केवलधारी॥ मनःपर्यवावधिधारि, चतुर्दश दश नव पूर्वधारिणाम् ॥ ४॥ शीलागादि रथसंग्रह ॥ २५ ॥ VO. GLORDarareer १३ मा अशुनलेश्यात्रिकरथना चित्रमा आवेली गाथाना अघरा शब्दोना अर्थ. जो-जे देस-देश जीए-जीवोने । अज्जव-आर्जवतावाळा किण्ह-कृष्ण राय-राज ररकतो-रक्षण करतो मुत्ति-निर्लोभता आउ-अपकाय ठेस-लेश्यावाळो अभिग्गह-अभिग्रहीक तब-तप खंतिजुर-क्षमायुक्त नील-नील विवज-विवर्जित संजम-चारित्र साहू-साधुन काउ-कापोत अणभिग्गह-अनभिग्रहीक वंदामि-बांदूंछ सच्च-सत्य इथ्यि-स्त्री अभिनिवेसिय-अभिनिवेषिक मद्दव-मार्दव सोम-शौच कहाइय-कथाओने संसइय-संशयिक जुए-युक्त अकिंचणो-अकिंचन भत्त-भक्त अणाभोगं-अनाभोगिक । स-सहित बंभ-ब्रह्मवर्ष १३ मा अशुनलेश्यात्रिकरथनी बहारनी गाथाना बुटा शब्दोना अर्थ. जो-जे | इथ्थिकहाइ-स्त्री कथाओने विवज-वर्जित | खंतिजुए-समायुक किण्हलेस-कृष्णलेश्यावाळा य-वळी . पुढविजीए-पृथ्वीकाय जीवोने साहू-साधुने मणसा-मनवडे | अभिग्गह-अभिग्रहीक रकंतो-रक्षण करतो । चंदापि-वांदुई 36GOOGRAM

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