Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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३५॥
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शोलांगादि रथसंग्रह. ॥३५॥
अधम्मा मग्गजीवा, असाहु असुत्त पंचविवरीया॥ मिच्छत्तं दसभेयं, किलिठ्ठ जीवाण नायवं ॥४॥
अधर्मा मार्गजीवा, असाधुर सूत्रं पञ्चविपरीताः॥
मिथ्यात्वं दशनेदं, क्लिष्टजीवानां ज्ञातव्यम् ॥ ४॥ धर्ममां अधर्म संज्ञाने, मार्गमा उन्मार्ग संझाने, अजीवमा जीव संज्ञाने, साधुमां असाधु संज्ञाने ने सूत्रमा असूत्र संझाने परिहरे ले. ॥४॥
(पागंतर) धर्मेऽधर्म स्तुमार्गे, जन्मार्गो जीवेजीव बोहव्यः ॥ साधुन साधुः सूत्रम सूत्रं चैव परिदरति ॥४॥
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. १५ ापथिकारथना चित्रमा आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. उवसम-उपशम | माण-मानथी
एसणा-दोष रहित आहार | पुढवि-पृथ्वी धरेण-धारंण करनारावडे | माया-कपटथी
लेवो ते. काइय-कायाको सविवेगेण-विवेकना धरनार लोह-लोभथी
भंडमत्त-पात्रा तथा मात्रकनी | आउ-अप संवर-संवर, पापर्नु रोकवू | इरिया-जवू आवq
समिविवाळो तेउ-अमि कोह-क्रोधथी
समिओ-समितिवाळो बच्चमत्त-लघुनिति अने व- वाउ-बायरो विमुको-विमुक्त | भासा-भाषा
डिनिति । वस्सइ-वनस्पति

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