Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 58
________________ |॥३४॥ शीलांगादि रथसंग्रह ॥३४॥ INOGROLOGRABPOROGRA कंदप्प देवकिविसि, अभिओग आसुरिय सम्मोहा ॥ एसाउ संकिलिहा, पंचविहा भावणा भणिया ॥२॥ कन्दर्प देवकिल्विषा, नियोगा आसुरिक सम्मोहा ॥ एषातु संक्लिष्टा, पञ्चविधा नावना नणिता॥२॥ (१) कंदर्प, (५) देवकिब्बिश, (३) अनियोग, (४) श्रासुरिक, (५) सम्मोहनावना आ पांच प्रकारनी क्लिष्ट नावना कहेली . ॥ २॥ दससंजमोवघाया,उग्गम १,उप्पाय२.णेस ३, परिकम्मे४॥ परिहरण५,नाण६,दसण७,चरित्त८,अचियत्त९,संरख्खा॥३॥ दश संयमोपघाता, उद्गमो त्पादेषणाः परिकर्मः ॥ (परिहरण) ज्ञान दर्शन, चारित्राऽप्रियत्व संरदाः ॥ ३ ॥ दस संयमना उपघातक ले. (१) उद्गम, (२) उत्पाद, (३) एषणा (8) परिकर्म, (२) परिहरण, 6|| (६) ज्ञान, (७) दर्शन, (७) चारित्र, (ए) श्रचियत्त, (१०) संरक्षा ॥३॥ GONOMEGREGORROREGARDORare

Loading...

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78