Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 56
________________ शीलांगादि रथसंग्रह. ॥ ३५॥ ROGROGROGroo पनारथी (पोतानाथी) दोष परिहरणो वघाय-अकल्पनीक। करीने विनयादिकथी विनय | अमग्ग-उन्मार्ग लागे ते,सगासंबंधीना का- उपकरणनी सेवावडे उप न करे ते. मग्ग-मार्ग रणथी उत्पन्न थयो ते दोष. घात थाय ते. | संरख्खणोवघाय-शरीरादि- जो-जीटने लिये उप्पाअणाय-उत्पादना दोष-| जणयं-करनालं फनी बाबतमा संरक्षण (मूर्छा) जीव-जीवने काइ पण कारणथी आहा- नाणोवघाय-प्रमादधी श्रुत. वडे करीने उपघात थाय ते. जीवे-जीवने विषे रमां दोष उपजावी आहार | ज्ञाननी अपेक्षाए उपघात | अधम्मे-अधर्मने विषे लेवो ते जेवा के धात्री थाय ते. | धम्म-धर्म अजीवं-अजीवने " दोष विगेरे. | देसणोवघाय-शंकादिकवडे | सन्न-संज्ञाने असाहु-असाधुने विषे एसणादोसं-गवेषण करवी ते करीने उपघात थाय ते | परिहरेइ-परिहरे छे. साहुं-साधुने तपास करवी ते. चरित्तोवघायं--समितिना भं-! धम्मे-धर्मने विषे असुत्ते-असुत्रने विषे परिकम्मेण-वस्त्र पात्रादि ग- गादिक वडे करीने उप- | अधम्म-अधर्म सुत्तं-मुत्रने गरवा मठारवावडे उपघात घात थाय ते. - अमग्गे-उन्मार्गने विषे मुत्ते-मुत्रने विषे ते परिकर्म उपघात. । अचियत्तोवधायं-अपितिवडे . मग्गे-मार्गने विषे | अमुत्तं-अमुत्रने १४ द्वितीय प्रककररथना बहारनी गाथाना अघरा शब्दोना अर्थ. धम्मट्टीओ-धर्मार्थी | उग्गमदोसं-उद्गम दोषने, । भावना | संकिलिछा-संक्लिष्ट वि-पण आपनारथी दोष लागे ते. | कंदप्प-कंदर्प भावना पंचाविहा-पांच प्रकारनी मणुओ-मनुष्य अहम्मो-अधर्मने विषे अभिउग-अभियोगिक भावना| भावणा-भावना मणसा-मनवडे धम्म-धर्मनी आसुरिय-आसुरिक भावना | भणिया-कहेली के कोहं-क्रोधने सन्न-संज्ञाने सम्मोहा-सम्मोह भावना दस-दश जिणित्तु-जीतीने परिहरेइ-परिहरे छे एसा-ए संजम-चारित्र कंदप्पं-कंदर्पने देवकिन्विसि-देवकिल्विशिक | उ-तो | उवधाया-उपघात करनारा RROGRA6GORRRRRRROR

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