Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
View full book text
________________
॥३॥
अभिग्गह-अभिग्रहीक | संसइयं-संशयिक अणाभिगहिअं-अनाभिग्रहोक अणाभोग-अनाभोगीक तहा-तथा
मिच्छत्तं-मिथ्यात्व अभिणिवेसियं-अभिनिवेशिक पंचहा-पांच प्रकारे चेव-निश्चे
होइ-छे (२)
| इथ्यिकहा-वी कथा
भत्तकहा-भक्तकथा देसकहा-देशकथा . तय-तेमन
रायकहा-राजस्था चउ-वार विवज्जते-बनता | धम्मथ्यी-धर्मायों (३)
-
-
शीलांगादि रथसंग्रह. ॥३०॥
GOOG GAPACID-6 9468-69TAS
ORDERDOSESEGORG
॥ श्री अशुभलेश्यात्रिक रथ ॥ १३ ॥ जो किण्हलेस मणसा, इथ्थिकहाइय अभिग्गह विवजं ॥ पुढविजिएरख्खंतो, खंतिजुए साहूवंदामि ॥ १॥
ये कृष्णलेश्या मनसा, स्त्री कथायां चानियद विवर्जम् ॥
पृथिवी जीवान् रदतः क्षमायुतान् साधून् वन्दे ॥१॥
जे कृष्णलेश्यावाळा मनवमे वर्जित, अनिग्रह मिथ्यात्व अने स्त्रीकथाने वर्जता पृथिवी १ आदि जीवोने पाळे जे तेवा क्षमायुक्त साधुऊने वांउडं. ॥१॥
अभिग्गह मणाभिगहियं, तहा अभिणिवेसियं चेव ॥ संसइय मणाभोगं, मिच्छत्तं पंचहा होई ॥२॥
BADMROGGEOG@GOOGGB

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78