Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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३१॥
शीलांगादि रथसंग्रह ॥ ३१॥ nove an ano man ang
आनियहिक मनानिग्रहिकं, तथाऽऽनिनिवेशिकं चैव ॥
सांशयिक मनानोगं, मिथ्यात्वं पञ्चधा नवति ॥२॥ मिथ्यात्व पांच जातर्नु होय . (१) अनिग्रहिक, () अनन्निग्रहिक, (३) अन्तिनिवेशिक, (s) सांशयिक अने (५) अनानोग. ॥२॥
इथ्थिकहा भत्तकहा, देसकहा, तहय रायकहा ॥ चउहकह विवज्जते, धम्मथ्थी साहू वंदामि ॥३॥
स्त्रीकथा नक्तकथा, देशकथा तथा च राजकथा ॥
चतस्त्रो विवर्जयतो, धर्मार्थिनः साधून वन्दे ॥ ३ ॥ स्त्रीकथा, नक्तकथा, देशकथा श्रने तेमज राजकथा. आ चार विकथाने वर्जता धर्मार्थी साधुने नमुंडं. ॥३॥
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१४ द्वितीय प्रकररथना चित्रमा आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. धम्मडिओ-धर्मार्थी मनसा-मनवडे | माणं-मानने - अभिउगं-अभियोगिक भावना वि-पण वयसा-वचनवडे मायं-मायाने
आमुरियं-आमुरिक भावना मणुओ-माणस
तणुणा-कायावडे लोह-लोभने पुनहिओ-पुन्यार्थी कोहं-क्रोधने
कंदप्पं-कंदर्प भावना भावना संमोहभावणं-संमोह भावना परलोगठिओ-परलोकाथि जिणित्तु-जीतीने - देवकिन्विसियं-देवकिल्विपिक उग्गमदोसं-उद्गमदोष-आ

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