Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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सुअ-श्रुतने धारण करनार । जीयंच-जीत व्यवहार, ब्रह्म- | केवल-केवळज्ञानी आणा-आज्ञाने धारण करनार.
मण-मनःपर्यवज्ञानी.. धारणाय-धारणाने धारण क- ववहारो-व्यवहार धारण क- | ओहि-अवधिज्ञानी रनार
.. रनार चउदस-चौद
नव-नव पुन्धि-पूर्वधर पुढमथ्य-एवी रीते पृथक् ।
पृथक
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शोलांगादि रथसंग्रहः ॥१७॥ Dore no one we are one ore
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॥शुजलेश्यात्रिकरथ ॥१२॥ जो तेउलेस मणसा, उवक्कमो उवसमिअ संमत्तो॥ निसग्ग रुइं धरतो, आगमधारिं नमसामि ॥१॥
यस्तेजो वेश्या मनसा, नपक्रम औपशमिक सम्यक्त्वः॥
निसर्गरूचिंधरन्, आगमधारिणं नमस्यामि॥१॥ • जे तेजो लेश्यावाळा मनवमे, उपक्रममा, औपशमिक ले सम्यकत्व जेनुं श्रने जे निसर्ग | रुचिने धरे ले तेवा आगम धारीने हुँ नमस्कार करुं .॥१॥ __खइयं खओवसमियं, वेयग उवसामिअंच सासणिअं॥
पंचविहं च समत्तं, पन्नत्तंवीयरागेहिं ॥२॥
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