Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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॥१६॥
जो-जे
शीलांगादि रथसंग्रह. ॥६॥
GDONOGRRDESTORAGN.
१२ मा शुनलेश्यात्रिकरथना चित्रमा आवेली गाथाना अघरा शब्दोना अर्थ.
| सासाणंमि-सासादन बीयरुइं-बीजरुचि | धारणा-धारणा तेउ-तेजो
खउवसम-क्षयोपशम अभिगम-अभिगम जीअ-जीत, ब्रह्मचर्य लेस-लेश्या सार-सार विथ्यार-विस्तार
ववहारि-व्यवहारवाळो पउम-पद्म वेईय-वेदक किरिया-क्रिया
केवलधारि-केवळज्ञानने धासुक्क-शुक्लं खईय-क्षायक संखेव-संक्षेप
रण करनारो उबक्कमो-उपक्रम निसर्ग-निसर्ग
धम्म-धर्म
मणपज्जव-मनः पर्यव
ओहि-अवधि निख्खेवो-निक्षेपो रुई-रुचिने..
आगमधारि-आगमने धारण
धर-धारण करताने अणुगमो-अनुगम धरतो-घारण करतो
करनारने
चउदस-चौद णओ-नय उवएस-उपदेश नमंसामि-नमस्कार करुंछु
पुचि-पुर्विने उपसमिय-उपशमिक आण-आज्ञा
सुअगणधारिं-श्रुत गणधरने संमत्तो-समकितवाळो सुत्त-सुत्र
आणाधारि-आज्ञा धारिने | पुन्वधरं-पूर्वधर १२ मा शुनलेश्यात्रिकरथना बहारनी गाथाना बुटा शब्दोना अर्थ. जो-जे
धरंतो-धारण करतो सासणिअ-सास्वादन । सुत्तरुइ-सूत्ररुची तेउलेस-तेजो लेश्यावाळा | आगमधारि-आगममा घा-पंचविहं-पांच प्रकारचें बीयरुइ-बीजरुची मणसा-मनवडे ' रण करनारने च-वळी
अभिगम-अभिगमरुची उवक्कमो-उपक्रम नमंसामि-नमस्कार करुंछ | सम्मत्तं-समकित
विच्छाररुइ-विस्ताररुची उपसमिय-उपशमिक एवा | खइयं-क्षायक
पन्न-कथुछे
किरिया-क्रियारुची संमचो-समिकतवाळो खोवसमियं-क्षायोपशमिक वीयरागेहिं-वितरागोए संखेव-संक्षेपरुची निसग्ग-निःसर्ग... वेयग-वेदक
उवएसरुई-उपदेशरुची धम्मरुइ-धर्मरुची | रुइं-रुचीवाला (ने) स्वसामिअं-उपशमिक आणारुइ-आज्ञारुची | आगम-आगमने धारणकरनार
BEEGGLEBRRORRBara

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