Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ ॥२५॥ समितिथी | आपुच्छणाइ-आपृच्छाए सहित सुधी | वणस्सइ-वनस्पति इच्छाकारेण-इच्छाकारवडे पडिपुच्छणाइ-प्रतिपृच्छाएसहित पुढविकायं-पृथ्वीकायने बेइंदी-बेरिद्रि जुओ-सहित सच्छंदणाइ-च्छंदनाए | (अ)पि-पण तेइंदी-तेइंद्रि मिच्छाकारेण-मिच्छाकारि तहसिकारेण-तहत्तिकारि मुनिमंतणाइ-मुनिमंत्रणवडे | आउकायं-अपकाय, पाणी | चरिंदी-चौरिदि आवसिआए-आवस्सिहिवडे | उपसंपयाइ-उपसंपदाए तेउकार्य- अग्नि पंचिंदी-पंचेंद्रि निसीहि-निसीहिवढे | जाजीवं-ज्यां सुधी जीवं त्यां वाकायं-वायरो अजीवं-अजीव ..११ मा संयमरथनी बहारनी गाथाउना लुटा शब्दोना अर्थ. हिंसइ-हिंसा करे । पेहा-प्रेक्षा सु-सारीपेठे [सुधी जाजीवं-ज्यां सुधी जीबुं त्यां सयं-पोते संजम-चारित्र इरियाए-इफ समितिवडे पुढविकायं-पृथ्वीकायने मणसा-मनवडे जुओ-युक्त, सहित इच्छाकारण-इच्छाकारि | अपि-पण. A BORDER वायरा शीलांगादि रथसंग्रह. ॥५॥ BRDoGOODoGRANG ॥श्री संयमरथ ॥ १२॥ हिंसइ न सयं मणसा, पेहासंजमजुओ सुइरियाए॥ इच्छाकारेणजुओ, जाजीवं पुढवि कायपि ॥१॥ हिनस्ति न स्वयं मनसा, प्रेक्षा संयम युतः स्वीर्यया ॥ इच्गकारेणयुतः, यावजीवं पृथिवी कायमपि ॥१॥ .. ... सारी ा समितिबाळो, प्रेदासंयमथी युक्त, श्छाकार नामनी समाचारी सहित एवोसाधु मनवमे पृथ्वीकायने पण जीवे त्यां सुधी पोते नथी हणतो ॥१॥. GruarCOMR

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78