Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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|el॥१३॥
शीलांगादि रथसंग्रह ॥ ५३॥ REGARDaroGEGOR
विसीय विसयमणो-श्रोत इंदि- द्रियना विषयथी विरक्त | बाउजीए-वायुकायना जीवोने | समद्दवो-मार्दव सहित । यना विषयथी विरक्त मनवाळो
वणजीए-वनस्पतिना जीवोने | सअज्जवो-आर्जव सहित : मनवाळो. विफासविसयमणा-स्पर्श इंद्रिय बेइंदि-बेइंद्रि जीवना ...| समुत्तिणो-मुक्ति सहित चख्खु विसयमणो-चक्षु इंद्रिय | ना विषयथी विरक्त म-| तेइंदी-तेइंद्रिय जीवना तवजुत्तो-तपथी युक्त . . नाविषयथी विरक्त मनवाळो. नवाळो.
चउरींदि-चौरेन्द्रि
ससंजमो-संजम सहित विजिभ्भ विसयमणो-जीभ ई- पुढविजीए-पृथ्वीकायनाजीवोने पंचिंदी-पंचेंद्रियना सच्चजुओ-सत्ययुक्त
द्रियना विषयथी विरक्त रख्खंतो-रक्षण करतो अजीवे-अजीवोने . सोयजुओ-शौचयुक्त मनवाळो
आउजीए-अपकायना जीवोने खंतिखमो-क्षमामा समर्थ | अकिंचणो-इपण परिग्रहरहित विघाणविसयमणो-नासिकाई- तेउजीए-तेउकायना जीवोने | जावजीवपि-जावजीव पण | बंभजुओ-ब्रह्मचर्ययुक्त
१० मा धर्मरथनी बहारनी गाथार्जना बटा शब्दना अर्थ.
पुढविजीए-पृथ्वीकायना जी- त्याग सहित | ससंजमो-संजम सहित नारिजीवो-नारि जीव | वोन | सअज्जवो-आर्जवसहित, स- | सच्चजुओ-सत्य युक्त दाणं-दान रख्खंतो-रक्षण करतो
रळता सहित वियरइ-आपेछे ...
सोअजुओ-शौचयुक्त, पवित्रता विसोय-श्रोत्र इंद्रियना
खंतिखमो-क्षमा करवामां समर्थ समुत्तिणो-मुक्ति सहित, नि.- युक्त विसयमणो-विषयथी विरक्त जावजीवंपि-जावजीव पण | भता सहित . अकिंचणो-कंइपण परिग्रह रहित मनवाळो । समदवो-मार्दव सहित, मान | तवजुओ-तपयुक्त | बंभ-ब्रह्मचर्यव्रत ।
॥श्री धर्मरथः॥१०॥
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उड्ढ दिसि नारिजीवो, दाणंवियरइ विसोय विसयमणो॥ पुढविजिए रख्खंतो, खंतिखमो जावजीवंपि ॥१॥

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