Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ - __ मोहना वशथी, देवादि चार नवोमां, शब्दादि पांच विषयोथी अने अशनादि दस संज्ञा| वझे अदान्तिवाळा में जे पाप मनथी कर्यु , ते पापने निंछ . ॥१॥ मोहे रागे दोसे, मण वयण तणूणि गइ चउकं च॥ पंचविसय दससन्ना, जइ धम्मासेवणा लोया ॥२॥ ___ मोहो रागो मेषः, मनो वचन तनूनि गति चतुष्कं च ॥ पंचविषयाः दश संज्ञाः यति धर्माऽऽसेवना सोकाः ॥२॥ मोह, राग, द्वेष ए त्रण; मन, वचन, काया, ए त्रण; चार गति, पांच विषयो अने दश संज्ञा ले. तेथी रहित थर हे लोको यतिधर्मनी आसेवना करो. ॥२॥ GIRBOORDARBOROGR.. शीलांगादि रथसंग्रहः॥ १०॥ GEOGORARBORDC ७ मा तपरथना चित्रमा आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. नाणरुई-ज्ञाननी रुचीवाळो । उवहि-उपधि (ना). सुअणुपेही-सारी अनुप्रेक्षा सम्मरुई-सम्यकत्वनी रुची- | सम्मत्तकसाइ-समाप्तकषाये | सुवायणीओ-सारी वाचना करनार वाळो | अट्ट-आर्तध्यान . आपनार सुद्धम्मकही-सारो धर्म कहेनार चरण-चारित्र (नी) विवजिओ-रहित सुपुच्छणीओ-सारो पूछवा गुरु-गुरु रुई-रुचीवाळो रुद्ध-रौद्रध्यान योग्य वेयावच्चकरो-वैयावच्च करनार देह-शरीर (ना) धम्म-धर्म सुपरियट्टी-सारुं परावर्तन: वायंग-वाचक विवेगी-विवेकवाळो | सहिओ-सहित करनार । थविर-स्थविर साधु

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78