Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 36
________________ आहारादि संज्ञाथी संवृत, पांचे इन्धियोनुं संवरह करनार, दमायुक्त साधु पोते पृथियो । र, जीवोने मनवमे हणतो नथ। ॥ १॥ करणाइं तिनि जोगा, मण माईणिउ हवन्ति करणाइं॥ आहाराई सन्ना, चउसोया इंदिया पंच ॥२॥ करणानि त्रीणि योगा, मनादीनि तु जवन्ति करणानि ॥ आहारादयः संज्ञाश्चतस्रः श्रोत्राणि इन्ज्यिाणि पञ्च ॥॥ त्रण करण, करवं, करावq तथा अनुमोदq. अने मन विगैरे त्रण एटले मन, वचन अने काय ते रीते त्रण जोग थाय. आहारादि चार संझाओ ने श्रोत्र इंद्रियादिक पांच इंजियो. ए रीते बोल साथे जोमवाथी आ रथ थायडे. ॥॥ शोलागादि रथसंग्रह. ॥१५॥ GOOGGGGGGrGBars BRDOOGenerve समाचारि अथवा नजरथ ५ माना चित्रमा आवेला अघरा शब्दोना अर्थ. भई-कल्याण जईण-यत्न करनार | वायग-वाचक, उपाध्याय | अबंभ-अब्रह्मचर्य वुट्टी-वृद्धि जिणवयण-जीनेश्वरोना वचन | पाणिवह-पाणीनो वध परिगह-परिग्रह कित्ती-कीर्ति . गण-गच्छ अलिय-अलिक-जुहूं राईभोयण-रात्रिभोजन नाण-ज्ञान थुइ-स्तुति वय-व्रत कोहाउ-क्रोधथी जुयाणं-युक्त कराणं-करनाराोने तेय-स्तेय-चारी माणाउ-मानथी दिठि-द्रष्टि सिद्धि-सिद्धि नियत्ताणं-नियममा राखनार, मायाउ-मायाथी चरण-चारित्र । सरि-आचार्य कबजे रोखनार | लोहाउ-लोभथी

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