Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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शोलांगादि रथसंग्रह.॥११॥
खंतिसंपनी-क्षमाए संपूर्ग [मुति-निर्लोभतायाळो
सच संजुत्तो-सत्य युक्त विमुक्को-रहित मद्दवजुत्तो-मार्दव (कोपळ - | तव समाउत्तो-तपयुक्त
सोयसंजुत्तो-शौच युक्त वंभचेरठिओ-ब्रह्मचर्यमांस्थित, ता) युक्त | संजमंमि-संजमने विषे अजब-आर्जन (सरळता) | थिरो-स्थिर
किंचण-कंइपग
ब्रह्मचर्य पाळनार श्रमण धर्मरथ बहारनी गाथाना अघरा शब्दोना अर्थ. हणेइ-मारे
संवुडओ-संवृत्त, रोकनार | करणाइं-करणादि-करवू, क- आहाराइ-आहारादिक सयं-पोते . सोइंदी-श्रोत्रंद्रि, कान
राबवु अने अनुमोदबुं सना-संज्ञाओ संवरणो-वश राखनार साहू-साधु
तिनि-त्रग
चउ-चार पुरविजीए-पृथ्वीकायना मणसा-मनवडे
जीवोने
जोगा-मन वचन कायाना योग सोया-श्रोत्रादि आहारसंनि-आहारादि सं. खंति-क्षमा
मणमाइणिउ-मनादिक इंदिया-इंदिगो ज्ञाथी | संपन्नो-युक्त ॥१॥ हवंति-छे
पंच-पांच NRU REAKIKIKAKIKI ॥ श्री श्रमणधर्म रथ ॥४॥
HARGORRRRRORN
DargarCREAGDOMBIDOES
न हणेई सयं साहू, मणसा आहारसन्नि संवुडओ। सोइंदीसंवरणो, पुढवि जिए खंति संपन्नो ॥१॥
न हन्ति स्वयं साधु मनसा, आहार संझा संवृत्तः ॥ .श्रोत्रेन्स्यि संवरणः पृथिवी जीवान् शान्ति संपन्नः ॥१॥

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