Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ शीलांगादि रथसंग्रह ॥ १३ ॥ ● Qoutes प्रकर doe doc de इच्छाकारं - इच्छाकार भणंताणं भणताने मिच्छाकारं - मिच्छाकारीने भद्दे - कल्याण नाण- ज्ञान जुआ-युक्त जिण - जीनेश्वरोनां तहत्तिकारं - तहत्तिकार आवस्सिय- आवरसहि निसिद्दियं - निस्सिहि ५ मा समाचारी रथ बहारनी करा - करनार (ने) पाणिवह - प्राणीनोवध, जीव हिंसा नियत्ताणं - नियममां राखनार इच्छाकारं - इच्छाकारने भणतागं-भणनारा वयण- वचन धुई-स्तुति आपुच्छणा- आपुच्छकारी समाचारी पडिपुच्छगा - फरी पुछते गाथाना अघरा शब्दोना सामायारि-समाचारी नो रहो- स्थ पंच-पांच नमुकार - नमस्कार सारहि - सारथी ए निउत्तो-जोडेलो छंदणाच्छंद्रना निमंतणा - नोतरुं देवं - कहेतुं उवसंवया - उपसंपदा अर्थ नाण- ज्ञान तुरंगम-घोडा जुतो - युक्त नेइ-लइ जाय छे फुडा-स्फुट, प्रगट परम- मोटुं निव्वाणं - मेक्षि ॥ श्री सामाचारीरथ ॥ ५ ॥ भई नाण जुयाणं, जिणवयण जिणथुई कराणं ॥ पाणिवह नियत्ताणं, इच्छाकारं भणंताणं ॥ १ ॥ ज्ञान युतानां यतोनां जिनवचन जिन स्तुति कराणं ॥ प्राणिवध निवृत्ताना, मिवाकारं जातां ॥ १ ॥ जिनना वचननी स्तुति करनार, ने जिननी स्तुति करनार, ज्ञान सहित, प्राणीवध (घात) श्री निवृत्त थला ने इछाकार समाचारीने साचवता (जणता) एवा यतिश्रनुं कल्याण थायो ॥१॥ Be

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78