Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ 17॥१५॥ शीलांगादि रथसंग्रह ॥ १५॥ CORRBarGORRES खीरम-धने दहि-दहिने | गुडं-गोळने मंसं-मांसने अवि-पण घयं-गीने कडाई-तळावेला मरुखण-माखण वजे-वर्ने : | तिल्लं-तेलने | मज्ज-मदिराने महुं-भध ६ वा नियमरथ बहारनी गाथाना अघरा शब्दोना अर्थ. अविरय--अविरति अप्प-थोडं | वज्जे-वर्जे ॥१॥ मज्ज-मद्य अणसणमणो-अनशनना मन- आहार-आहारवडे खीरं-दुधने . मंसं-मांस वाळो | उणुदरियो-उणोदरि करनार | दहि-दहिने मख्खण-माखण मण-मनने सिथ्थतवो-अन्नना दाणाथी | घयं-धीने. महुं-मध संलीणो-संकोची राखनार तप करनार तिल्लं-तेलने भवे-थाय सुदबत्त-सारा द्रव्यपणानो खीरं-खीरने . गुड-गोळ दसहा-दस प्रकार ॥२॥ तणुक्कोसो-शरीरने कष्ट देनार अवि-पण ओगाहिम-तळेला पकवान BRANDRABODOGGARA ॥ श्री नियमरथ ॥ ६॥ अ विरयाण सणमणो, मणसंलीणो सुदवतणुक्कोसो॥ अप्पाहारोणुदरिओ, सिथ्थतवो खीरमवि वजे ॥१॥ अविरतानशन श्रमणः, मनः संखीनः सुव्य त्वानुत्कर्षः ॥ अल्पाहारोनोदरिकः, सिक्थ तपाः दीरमपि वर्जयेत् ॥१॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78