Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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शीलांगदि रथसंग्रह. ॥ ए॥
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॥ अथ श्री दामणारथ॥ ३॥ कयचउसरणो नाणी, नियमियअसणोअनाणअइयारं॥ आलोइय पुढविजिए, अरिहसमख्खं खमावेमि॥१॥
कृत चतुश्शरणो ज्ञानी, नियमिताऽशन श्चातीचारम् ॥ _ आलोच्य पृथिवी जीवान् , अर्दत् समदं दमयामि ॥१॥ चार शरणने करनार, मित आहारवाळो ज्ञानी एवो हुं अतिचारने आलोग्ने पृथ्वी विगेरेना जीवोने अरिहंतनी साहीए. खमा. ॥१॥
अरिहंत सिद्ध साहू, धम्मायरिए अ संघउ [जओ] वंदे॥ बुच्छामि समासेणं, पजता राहणं परमं ॥२॥
' अर्हत् सिद्ध साधून, धर्माचार्यान् च संघं तु वंदे ॥
वक्ष्ये समासेन पर्यन्ताऽऽराधनं परमं ॥२॥ (पागंतर) .... अरिहंत, सिद्ध, साधु, धर्माचार्य अने संघने हुं वांऽबुं अने संदेपे करीने उत्कृष्ट एवं पर्यंत (वटर्नु) आराधन हुं कहीश ॥२॥ चउसरण नाण असणाइयार पुढवाइ जीवगाइणं रासीणं]॥ आराहण गाणं पुण, सहसा अट्ठारस हवन्ति ॥ ३॥
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