Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
View full book text
________________
शीलांगादि रथसंग्रह ॥ ७ ॥
गुप्ति ज्ञानादि त्रिकं, प्रशमित क्रोधादि समिति पञ्चकं च ॥ म्यादीन् रक्षन्, चक्र समाचारी युक्तश्च ॥ २ ॥
प्रशमित कर्या
क्रोधादिक ते जेणे एवो, त्रण गुप्ति, ज्ञानादिकत्रिक, पंचसमिति ने पृथ्व्यादिक जीवोनुं रक्षण करतो, चक्रवाळ समाचारि युक्त होय. ॥ २ ॥ इवा मिथ्या तथाकार, यावश्यिकी नैषेधिकी च ॥ . प्रचन्ना प्रति प्रश्न: बन्दना तथा निमन्त्रणो संपदा दशधा ॥ ३ ॥ saro fnar ( मिठामिदुक्क मं देवुं ), तह त्ति करवी, जतां यावस्सदी कदेवी, यवतां निस्सिदी कदेवी, प्रछना ( कोइ कार्य माटे गुरुने पूवुं ), प्रतिपृष्ठा ( वारंवार पूबवुं ), बंदना (कोइ पण साधुने निमन्त्रण कर ), निमंत्रणा ( आहार लाव्या पहेलां निमन्त्रण कर), उपसंपदा ( ते ज्ञानादिकनी श्रद्धा करवी, एम दस प्रकारे साधुनी सामाचारी बे ॥ ३॥
अथ श्री श्रीजा खामणा रथना चीत्रमां आवेला घरा शब्दांना अर्थ.
कामने अनुमोदनार नाणी - सम्यक्ज्ञानी दिठ्ठी - सम्यकदृष्टि चरणी - सम्यक् चारित्र
वाळो
नियमियअसणोअ - निय
कयच उसरणो- अरिहंत, सिद्ध, साधु अने जैनधर्म
ए चारनुं शरण करनार गरिहियदुकडो- पापनी
निंदा करनार सुकाणु मोयण - सारा
मित आहारवाळो नियमियपाणोअ - नियमित पाणी पीनार नियमिय खाइमोअ - नियमित खादिम वापरनार नियमिय साइमोअ - नियि
मित स्वादिमवाळो नाण- ज्ञान (ना) अइयारं - अविचारने दंसणं-दर्शन (ना) चरण - चारित्र (ना) तब-तप (ना)
Q By ই ঊকই ঊke ঊ- Boy Goes G
119 11

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78