Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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कान्ति मार्दव मार्जवं मुक्तिः तपः संयम व बोधव्याः ॥
सत्यं शौच माकिञ्चन्यं, च ब्रह्म च यतिधर्मः ॥ २ ॥
शांति, मृडुता, सरळता, निलजता, तप, संयम, सत्य, शौच, अपरिग्रहधारिप ने ब्रह्मचर्य एटला (दश) यति (साधु) ना धर्म बे. ॥ २ ॥
जो करणे सन्ना, इंदिय भूमाइ समणधम्मोय ॥ सीलिंग सहस्साणं, अठ्ठारसगस्स निप्पत्ति ॥ ३ ॥
योगः करणं संज्ञा, इन्द्रियं भूम्यादि श्रमण धर्मश्र ॥
शीलांग सदस्राणां अष्टादश सहस्र निष्पत्तिः ॥ ३ ॥
योग, करण, संज्ञा, इंडिय, भूमिं विगेरे ने श्रमण धर्म या बने क्रमपूर्वक बोलतां अढार हजार ( जांगा ) शीलांगरथना थाय बे. ॥ ३ ॥
करणाई तिण्णि जोगा, मणमाइणिओ हवन्तिकरणाई (भेयाइं ) ॥ आहाराई सन्ना, चउ सोआ ईदिया पंच ॥ ४॥
करणानि त्रीणि योगा, मन यादीनि तु जवन्ति करणानि ॥ आहारादयः संज्ञा चतस्रः श्रोत्राणि इन्द्रियाणि पञ्च ॥ ४ ॥

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