Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 28
________________ ॥ १ शालागादि रथसग्रह.॥४॥ GEOGGAGE (करवं, करावq अने अनुमोदb) ए त्रण करण अने (मन, वचन अने काय)आ योग क्रियामा | साधनरुप . थाहार, नय, मैथुन थने परिग्रह ए चार संज्ञा जे. श्रोत्र ( कान ) चक्कु (आंख) अने घाण (नाक) रसना (जीन) अने स्पर्श ( चाममी) ए पांच इन्जियो बे. ॥४॥ . नूम्यादयो नव जीवा, अजीव कायश्च श्रमण धर्मश्च ॥ . दान्त्यादि देश प्रकारः एवमिति प्रनावये देतां ॥ ५॥ पृथ्वी, पाणी, तेज, वायु, वनस्पति, बेन्ज्यि, तेन्जिय, चौरेन्ष्यि, पंचेन्द्रिय ए पृथ्व्यादि नव जीवकाय तथा अजीवकाय एम दश काय . तथा बीजी गायामां कह्या मुजब दश प्रकारनो श्रमण धर्म एवी | रीते आ मूळ गाथानी नावना करवी. ॥५॥ पृथिवि आपः तेजः, वायुः वनस्पति सन्जिय त्रीनिधये ॥ - चतुष्पञ्चेन्ड्यि जीवाऽऽरम्नं वर्जयेद् दशधा ॥६॥ पृथ्वी, पाणी, तेज, वायु, वनस्पति, बेन्जिय, तेन्जिय, चौरेडिय अने पंचेन्द्रिय तथा अजीव एप्रमाणे | ए दशनो दश प्रकारे आरंन वर्जे. ॥६॥ (श्रा रथनी पांचमी तथा बही गाथा मूळ मळो भावी नयी.) SONGrenoNOMICROPare Reut ५ जा दसविध चक्राळ सामाचारी रयना चित्रमा आवेजा अवा शब्दोना अर्य. मणगुचो-मनगुप्तिवाळो | सहिडी-सम्यक दर्शन सहित य-अने, वळो । इरिय-र्या-वालवामा । सदोष वयगुत्तो-वचनगुप्तिवाळो सच्चरणी-चारित्र सहित मामो-मान, अहंकारवाळो सपिभो-समितिवाळो गिहिनिख्खिाग-रहित कायगुत्तो-कायगुप्तिवालो पसमिय-उप्रशांत पाम्पोछे | मायो-कपटवाळो भासा-भाषा आहार लेयो सन्नाणी-संज्ञा सहित । कोहो-कोर | लोहो-लोपत्राको एसगा-पगा, बेंताली-डिग छेवू, ग्राग करवू

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