Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 23
________________ ॥कामावस्था रथः॥२१॥ जैनो करन्तिमोहं, मस्सिनि संग सोइंदि। वजिअ वपुसक्कारे, नइति चिन्ते मुणी वंदे॥१॥ जनाकरन्ति जकारन्तिन नाणुमन्ना ई००० ६००००० make मासा २००७ चयसालपुएगा २००० मोहमपुस्सिव मोई लिरिइने संग ५०० संग५०० मोहं देविधि मारूविलि सग.५०० संग ५०० पक्रियइति चरइत्तर अन्तरराझियसयतामा रहर20 सोइंदि चरिकंदि १७ फासिन्दि घाणिन्दि जिनिन्दि १०० विविसमाप्रयागन्दिर १०६ १०० रस्सायरल २० चलिअम्पु वझिसोहा रेहनिरिक वा विस्मानि सकार सकार. चिरमणे इविभेगे सयजचिन्स गए रस/पिसथल/वकिपा १० जए हासजसंसरी JCTOR १० 104 गयम्भमझ १० महाशिन्त थीदेस निरीहगे अदीहरसा-मंगेरइ चिरीपसंत दूहे मुन सुशवर । सगे बंदे हगे घरे लीचंदै दहाग अमुच्छ मुत्ति/ मुगाबरे /मुशीयदे

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