Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 11
________________ ॥संसार रथ॥ण नड़ दिसि पुरि सजीवो, कोही सोईदियस्स सुह हे। जोहण पुढविजीचे, सो संसारं परि नमः ॥ ११॥ संसार भवअडवी, कम्म समगंदीह ठिकतिष्य बह पासो।। हदंदोलिं जीवो, सुगइ भावारि सिधिसुहं ॥२॥ WwwfreeMeic उहादास अहो दासतारयादास ६००० ६०० पुरिसजानाकोपजीवी २००० २००० २००० कोही माए जाना माया ५०० ५०० ५०० ५०० जोहरापा पाव जोहण अजायण जोहएच ध्यजीव दियजीवे मोहन १० शाना सद्विसुर सानपान हहे १० जोहरते। दियजीवे १०० जीवरूगई भावारिसान १० सजीव सगा साई दिय सुह चरिक दिवसु पालि दिय सरसालाश्य फातिदिय हेनं १०० ह है१०० १०० जाहला पुष्य जोदलशान जोहणाने जाहण या जाहलचएमाध विजीचे -जीचे जीच. उजीचे स्तावला १० जीव.२० ७.१० सो संसाराभवाडची सोन कम्मसवर्णदीह उसो नीच रससो लंधर सो पवने पर्वते पवतेइ 9ोहण नपाउएनिवरना यजी बहुदोजिस मअवश् बह पदसोप रिअमर धन्द६ २ SSSS TOS

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