Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 12
________________ ॥श्रीधर्मरया १०॥ नई दिसिनारिजीयो, दाणं वियर पिसोय विसयमगो॥ पुद विजिए ररकतो, वंतिरखयो जाबजीपति खंतिरक्मो समयो, सज्जयो समुत्तिए नतयजुत्तो।। स संजमो सञ्चजुन, सोअनुभअकिंचगो बंभ। LAALHASHA जागा ACCORINGHSDMRAvilandey उरिसि प्रहरिसितिरिय दिसि ६००० |६००० नारिजीवो परि सजीवो | कीवजीवो २०७० २००० दाएं वियरइ सीलं पान नवमतकर भावणं भाव ५००० ५००० ५००० २००० ५००० बीर-ग्रजीवरस्कती है। रिटोर-पंचिरी ती20 अकिंचणी जाय । पिसाच सय विवररुक्सिय विजिम विसविधाएग विस विकास विसय नो १०० मणी १०० रमसो १०० यमको १०० मग १०० भजनजावमा तो १० किती १० जीर्वपिनमा नस्टीररकं-तिइदी ररक जाब//सोयजुयोजाच पुट बिजीएरामजीएर- जीए वानजीए वजीएररकंतो १० कंत ररकले १०रकतो१० रकंतो १० जीवविद" ना १० जापा स संजमोजाव/ खनिश्वमोसमनी जाच सऊगोजा समुत्तिणोजा तय-जुत्ता जॉबजीविजाचदिवजीपंपिजीवंपि जाऔषपि १ ४ दीपि६

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