Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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आजोचना रथः॥१६॥ आलोयण परिणओ, मगसा कोढाई यकिन सई॥ पुटपिजी रकंतो, आकंपइ तं वियमि ॥१॥
आकंपइत्ता अएमाण,इना ऊं दि;बायरं व सुहम या।। बन्न सद्दान बहु, जए। अचत्त तस्सेवी ॥२॥
LAKATARA
जिाएगा कपमा ED
प्राजायएगा परिणन BOB
प्राजाया निंदतो ६०००
मासा 2000
वयसा २०००
तएगा २०००
कोहाइ निहिने
मालाचितिकि मायाविलि
किन ५००
जोहाइव शिनि
कबअजीवरकता
५००
ररकता १०
सह
पाणी
फास
अवयलायव
जाधव तस्सेवित विस्त
१००
२००
१००
- १००
मिर
म
प्रदविजापानजीतेन्जीमा ररकतोररकंते। | रकेतो
चाननीय बास्सइजी में रखंतो रकतो
रासहजादायकैती रखतारकली
ररकता
लहानललबहजएण्यम
दिवमिद
अकिएइत रिचडोनि
एभाइवे निॐ गि
जटित
वायरबथा विवऊ मि
जसुङ्मत चिऊनि
चिनने विष केमियपऊ
मिट
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