Book Title: Shilangadi Rath Sangraha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown
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द्वितीय प्रकर रथ ॥१४॥ धम्मठीन विमान, मासा कोई जिणितु कंदणं॥ नगगम दोसं अहमे, धम्म सन्न परि हरेड ।।१।। कटप्प विकिञ्चिसि, अभिनग ग्रासरिय सम्मोहा॥ एसान संकिलिला पंचविहा भावणा भलिया॥२॥ दम संजमो बधाया नगामा नप्पायर एस३ परिकम्मे। परि हरण ५ नाग देसण,७चरित अचियत्त संररका ॥३॥
अम्मा मण जीवा, असाह असुत्न पंच विपरीया।। मिती सभेनं, किलितू जीवाण नायव्वं॥४॥
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धम्मदिन वि पुत्रहिन विम-पलोग ठिन मन ० ६००० विमएच ०१
भएणसा २०००
चयसा २०००
तपणा
२०००
कोहं चितिच मा जिदिशतु माय जिलिनालाई जिगिता
प
सीब-सरकापमान
मस्तिोचाया
प्रचियती
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पार-20
कदम १०
यतिविसिय अभिनासरियासमोर भावों।
१०
२००
१००
१०
अगच१०
साहुन
शुत्तेअसून
असून
नगाम होस गप्पाणायाप्रेसणादोस परिकम्मेलय परिहरगोयया।
यजयं.
190पीवधायज-दिसणायद्याय/GOS
यं. १०
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१०
१०
१०
१०
अजीम साहुहर
विध धम्मसन धम्म अधम्पस अमन्णे मागसमग्गे अमग्णा
परिहरेइ परिहरेइ सन्न परिहरेड
जीवेजीय प
परिहरेड
रिहरे
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