Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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विषय-परिचय
११ अल्पबहुत्वानुमम इस अनुयोगद्वारमें २०५ सूत्रोंमें चौदह मागगाओंके आश्रय से जीवसमासोका तुलनात्मक प्रमाणप्ररूपण किया गया है। इस प्रकरणमें एक यह बात ध्यान देने योग्य है कि सूत्रकारने वनस्पतिकाय जीवोंसे निगोद जीवोंका प्रमाण विशेष अधिक बतलाया है जिसका अभिप्राय धवलाकारने यह प्रकट किया है कि जो एकेन्द्रिय जीव निगोद जीवोंसे प्रतिष्ठित हैं उनका वनस्पतिकाय जीवोंके भीतर ग्रहण नहीं किया गया। यहां शंकाकारके यह पूछने पर कि उक्त
आवोंकी वनस्पति संज्ञा क्यों नहीं मानी गई, धवलाकारने उत्तर दिया है कि यह प्रश्न गौतमसे करो, हमने तो यहां उनका अभिप्राय कह दिया । " (पृ. ५४१)।
इन ग्यारह अधिकारों के पश्चात् एक अधिकार चूलिकारूप महादंडकका है जिसके ७९ सूत्रोंमें मार्गणा विभागको छोड़कर गर्मोपक्रान्तिक मनुष्य पर्याप्तसे लेकर निगोद जीवों तक जीवसमासों का अल्पबहुत्व प्रतिपादन किया गया है और उसीके साथ क्षुद्रकबन्ध खण्ड समाप्त होता है।
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