Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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खंडागमकी प्रस्तावना
गया है । पूर्व निर्देशानुसार जीवस्थानके द्रव्यमाण व इस अधिकारके प्ररूपण विशेषता केवल इतनी ही है कि यहां गुणस्थानकी अपेक्षा नहीं रखी गई ।
६ क्षेत्रानुगम
इस अनुयोगद्वार में १२४ सूत्रोंमें चौदह मार्गगानुसार सामान्य लोक, अधोलोक. ऊर्ध्वलोक, तिर्यग्लोक व मनुष्यलोक, इन पांचों लोकों के आश्रय से स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, सात समुद्घात और उपपादकी अपेक्षा वर्तमान निवासकी प्ररूपणा की गई है । पूर्वके समान यहां भी गुणस्थानों की अपेक्षा नहीं रखी गई ।
७ स्पर्शनानुगम
सूत्रों में गुणस्थानक्रम को छोड़कर केवल चौदह मार्गणाओं के अपेक्षा स्वस्थान, समुद्घात व उपपाद पदोंसे वर्तमान व
इस अनुयोगद्वार में २७४ अनुसार सामान्यादि पांच लोकों की अतीत कालसम्बन्धी निवासकी प्ररूपणा की गई है ।
८ नाना जीवों की अपेक्षा फालानुगम
इस अनुयोगद्वार में ५५ सूत्रों में चौदह मार्गणानुसार नाना जीवोंकी अपेक्षा अनादिअनन्त, अनादि- सान्त, सादि - अनन्त व सादि-सान्त कालभेदों को लक्ष्य कर जीवोंकी कालप्ररूपणा
की गई है ।
९ नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरानुगम
इस अनुयोगद्वारमें ६८ सूत्रों में चौदह मार्गणानुसार नाना जीवोंकी अपेक्षा बन्धकोंके जघन्य व उत्कृष्ट अन्तरकालकी प्ररूपणा की गई है ।
१० भागाभागानुगम
भाग,
इस अनुयोगद्वारमें ८८ सूत्रों में चौदह मार्गणाओं के अनुसार सर्व बन्धकोंके भागाभागकी प्ररूपणा की गई है। यहां भागसे अभिप्राय अनन्त और संख्यातवें भागसे; तथा अभाग से अभिप्राय अनन्त बहुभाग, असंख्यात बहुभाग व संख्यात बहुभाग से है । उदाहरण स्वरूप 'नारकी जीव सब जीवों की अपेक्षा कितने भागप्रमाण हैं ? ' इस प्रश्न के उत्तर में उन्हें सब जीवों के अनन्तवें भागप्रमाण बतलाया गया है ।
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जीवों की अपेक्षा असंख्यातवें भाग
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