Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५ ) आदेशसाधुश्रावक-व्रतोपकरणचरणतत्त्वानाम् । सामायिकप्रतिक्रमणा-नामेव संख्या च निशिभक्तम् ॥१५॥ ठिइ १३५ अट्ठिइकप्पो १३६ क-प्पसोहि १३७ आवस्सयं १३८ मुणिसरूवं १३९ । संजम १४० धम्मपभेया १४१, तहेव वत्थाण वन्नाई १४२ ॥ १६ ॥ स्थित्यस्थितिकल्पः कल्प-विशोधिरावश्यक मुनिस्वरूपम् । संयमधर्मप्रभेदा-स्तथैव वस्त्रस्य वर्णादि ॥ १६ ॥ गिहि १४३ वय १४४ केवलिकालो १४५, सव्वाउं १४५ तह य मुक्खमासाई १४७ । उडु १४८ रासि १४९ ठाण १५० आसण १५१, ओगाहण १५२ तव १५३ परीवारा १५४ ॥ १७ ॥ गृहिवतकेवलिकालः, सर्वायुस्तथा च मोक्षमासादिः । उडुराशिस्थानासन-बगाहनातपःपरीवाराः ॥ १७ ॥ वेला १५५ अर १५६ तस्सेसं १५७, तह जुग १५८ परिआयअंतगडभूमी १५९ । मुक्खपह १६० मुक्खविणया १६१, पुव्वपवित्ती य १६२ तच्छेओ १६३ ॥ १८ ॥ वेलाऽरतच्छेषं, तथायुगपर्यायान्तकृभूमिः । मोक्षपथमोक्षविनयाः, पूर्वप्रवृत्तिश्च तच्छेदः ॥ १८ ॥ सेससुयपवित्तं १६४ तर १६५, जिणजीवा १६६ रुद्द १६७ दरिसण १६८ च्छेरा १६९ । तित्थे उत्तमपुरिसा १७०, सतरिसयं होंति जिणठाणा ॥ १९ ॥ For Private And Personal Use Only

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