Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
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( २४ ) भाणु १५ विससे-ण १६ सूर १७ सुदरिसण १८ कुंभय १९ सुमित्तो २० । विजओ २१ समुद्दविजया २२ ऽ-ससेण २३ सिद्धत्थ २४ जिणपिअरो ॥ ९८ ॥ जिनजनकाः ॥
नाभिर्जितशत्रुर्जितारिः, संवरो मेघो धरः प्रतिष्ठनृपः । महसेन सुग्रीव दृढरथा-विष्णुवसुपूज्यः कृतवर्मा ।। ९७ ।। सिंहसेन भानुविश्वसेनाः, सूरः सुदर्शनः कुम्भः सुमित्रः । विजयः समुद्रविजयो-ऽश्वसेनः सिद्धार्थो जिनपितरः ॥ ९८ ॥
अट्ठ जणणीउ सिद्धा, नाही १ नागेसु सत्त ईसाणे । अट्ठ य सणंकुमारे, माहिदे अट्ट पिअरो य ।। ९९ ॥ वीरस्स पढमपिअरो, देवाणंदा अ उसभदत्तो। सिद्धापच्छिमपिअरो, पुण पत्ता अच्चुए वावि ॥ १०० ॥
अष्टजनन्यःसिद्धा-नाभिर्नागेषु सप्त ईशाने । अष्ट च सनत्कुमारे, माहेन्द्रेऽष्टपितरश्च । वीरस्य प्रथमपितरौ, देवानन्दा चर्षभदत्तश्च । सिद्धौ पश्चिमपितरौ, पुनः प्राप्तावच्युते वाऽपि ॥ १० ॥
मेरुअह १ उड्डलोया २, चउदिसिरुअगाउ ५ अट्ठ पत्ते। चउविदिसि ७ मज्झरुयगा ८, इइंति छप्पनदिसि कुमरी ॥१०॥ मेरोरधऊर्ध्वलोका-चतस्रोदिग्रुचकादष्ट प्रत्येकम् । चतस्रोविदिङ्मध्यरुचका-दागच्छन्ति षट्पञ्चाशहिक्कुमार्यः।१०१।
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