Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( २८ ) धर्मस्वभावाद्धर्मो-गर्भे माताऽपि धार्मिकाऽधिकम् १६ । शान्तिकरणाच्छान्ति-देशेऽशिवोपशमकरणात् (१६) ॥ ११५ ।।
कुंथुत्ति महीइ ठिओ, भूमीठिअरयणथूभसुविणाओ। १७ । वंसाइबुड्डिकरणा, अरो महारयणअरसुविणा १८ ॥ ११६ ।। कुन्थुरितिमह्यां स्थितो-भूमिस्थितरत्नस्तूपस्वप्नतः १७॥ वंशादि वृद्धिकरणा-दरो महारत्नाकरस्वप्नात् १८ ॥ ११६ ॥ मोहाईमल्लजया, मल्ली वरमल्लसिजडोहलओ १९ । मुणिसुबओ जहत्था-भिहो तहंबावि तारिसीगब्मे २० ॥ ११७ ॥ .
मोहादिमल्लजया-मल्लिर्बरमाल्यशय्यादोहदतः १८ । मुनिसुव्रतो यथार्थाऽ-भिधस्तथाम्बाऽपि तादृशी गर्भे १९॥११७॥ रागाइनामणेणं, गम्भे पुररोहिनामणाउ नमी २१ । दुरिअतरुचक्कनेमी, रिट्ठमणीनेमिसुविणाओ ॥ २२ ॥११८॥ रागादिनामनेन, गर्भे पुररोधिनामनानमिः २१ । । दुरिततरुचक्रनेमी-रिष्टमणिनेमिस्वप्नतः २२ ॥ ११८ ॥
भावाण पासणेणं, निसिजणणीसप्पपासणा पासो २३ ।
नाणाइधणकुलाई-ण वद्धणो वद्धमाणो य ॥२४॥११९॥ भावानां दर्शनेन, निशि जननीसर्पदर्शनात् पार्श्वः २३ । ज्ञानादिधनकुला-दीनां वर्द्धनो वर्द्धमानश्च २४ ॥ ११९ ॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112