Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २९ ) अहवा भावारिजया, वीरो दुट्ठसुरवामणीकरणा २४ । सामन्नविसेसेहिं, कमेण नामत्थदारदुगं ॥ १२० ॥ अथवा भावारिजया - द्वीरोदुष्टसुरवामनीकरणात् २४ । सामान्यविशेषाभ्यां क्रमेण नामार्थद्वारद्विकम् ।। १२० ।। 1 गो १ गय २ हय ३ कवि ४ कुंचा ५ - रत्तपउम ६ सत्थिया ७ ससी ८ मयरो । ९ सिविच्छ १० खग्गि ११ महिसा १२, वराह १३ सेणा अ वज्रंच १५ ।। १२१ ।। हरिणो १६ छगलो १७ नंदा-वत्त १८ कलस १९ कुम्भ २० नीलउप्पलया २१ । संख २२ फणीसर २३ सीहा २४, जिणोरुठिअरोमलञ्छणया । १२२ ।। गोगजहयकपिक्रौञ्चा-रक्तपद्मस्वस्तिकौ शशी मकरः । श्रीवत्सखङ्गिमहिषा - वराहः सेनश्वव ॥ १२१ ।। हरिण: छागोनन्दा - वर्त्तः कलशकूर्मनीलकमलानि । शंखफणीश्वरसिंहा- जिनोरुस्थितरोमलाञ्छनानि ।। १२२ ।। इग १ पण २ नव ३ य सुपासे, पासे फणतिन्नि १ सग २ इगार ३ कमा । फणिसिञ्जाविणाओ १, फणिंदभन्तीइ २ नन्नेसु ॥ १२३ ॥ एक पश्च नव च सुपार्श्वे, पार्श्वेफणास्त्रयः सप्तैकादशक्रमात् । फणीन्द्रशय्या स्वप्नातू, फणीन्द्रभक्त्या नान्येषु ॥ १२३ ॥ For Private And Personal Use Only

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