Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 58
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५१ ) युद्धवीर्यः सीमन्धर - स्त्रिपृष्ठविष्णुर्द्विपृष्ठश्च स्वयम्भूः ॥ पुरुषोत्तमविष्णुः पुरुष - सिंहः कोणालकनृपश्च ॥ २२१ ॥ नृपतिकुबेरः सुभूमोऽ-जितोविजयमहश्च चक्रिहरिषेणः || कृष्णः प्रसेनजित् - णिकश्च जिनभक्तराजाः ॥ २२२ ॥ वित्तीइ सङ्घबारस, लक्खे पीईइ दिति कोडीओ || चक्की कणयं हरिणो, रययं निवई सहसलक्खे ॥ २२३ ॥ भत्तिविहवाणुरूवं, अन्ने वि अ दिंति इन्भमाईया || सोऊण जिणागमणं, निउत्तमणिउत्त एसुंबा ॥ २२४॥ वृत्या सार्द्धद्वादश - लक्षाणि प्रीत्या ददति कोटीः ॥ चक्रिणः कनकंहरयो - रजतंनृपतयः सहस्रलक्षाणि ॥ २२३ ॥ भक्तिविभवानुरूप- मन्येपि ददतीभ्यादयश्च || श्रुत्वा जिनागमनं, नियुक्तानियुक्तेषु वा ॥ २२४ ॥ जक्खा गोमुह महज - क्ख तिमुहजक्खेसतुंबरूकुसुमो । मायंग विजयअजिया, बंभो मणुएसर कुमारो ॥ २२५ ॥ छम्मुह पयाल किन्नर, गरुडो गंधव्वतह य जक्खिदो || सकुबेर वरुणभिउडी, गोमेहोपासमायंगो ॥ २२६ ॥ यक्षा गोमुखो महायक्ष - त्रिमुखो यक्षेशस्तुंबरुः कुसुमः ॥ मातंगो विजयोऽजितो - ब्रह्मा मनुजेश्वरः कुमारः ।। २२५ ।। For Private And Personal Use Only

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