Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 63
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५६ ) लक्खा पण १ पण २ छच्चय, तिसु पंचय नवसु चउर नवसु तिगं । सड्डीण कमा तदुवरि, सहसा चउपन्न १ पणयाला २ ॥ २४३ ॥ छत्तीस ३ सत्तवीसा ४, सोलस ५ पण ६ तिनवईअ ७ इगनवई ८ । इगहत्तरि ९ अडवन्ना १०, अडयाल ११ छत्तीस १२ चउवीसा १३ ॥ २४४ ॥ चउदस १४ तेरस १५ तिनवइ १६, एगासीई १७ बिसत्तरी १८ सयरी १९ ।। पन्न २० डयाल २१ छतीसा २२, गुणयाल २३ द्वारस २४ सहस्सा ॥ २४५॥ लक्षाः पञ्च पञ्चषट् च, त्रिषु पञ्च नवसु चत्वारि नवसु त्रीणि ॥ श्राद्धीनां क्रमात्तदुपरि, सहस्राणि चतुष्पञ्चाशत् पञ्चचत्वारिंशत् ॥२४३॥ षट्त्रिंशत् सप्तविंशतिः, पोडप पञ्चत्रिनवतिश्चैकनवतिः। एकसप्ततिरष्टपञ्चाश-दष्टचत्वारिंशत् चतुर्विशतिः ॥ २४४॥ चतुदेश त्रयोदशत्रिनवति-रेकाशीतिर्द्विसप्ततिः सप्ततिः ॥ पञ्चाशदष्टचत्वारिंशत् षट्त्रिंश-देकोनचत्वारिंशदष्टादश सहस्राणि ॥ २४५ ॥ पणपन्नलक्ख अडया-लीससहस्सा य सावया सवे । इगकोडी पण लक्खा, अडतीस सहस्ससड्डीओ ॥ २४६ ॥ पञ्चपञ्चाशल्लक्षाण्यष्ट-चत्वारिंशत्सहस्राणि श्राद्धाः सर्वे । एककोटीपञ्च लक्षा-ण्यष्टत्रिंशत्सहस्राणि श्राद्धयः ॥ २४६ ।। उसहस्सवीससहसा १, वीसंबावीस वावि अजिअस्स २ पनरस ३ चउदस ४ तेरस ५, बारसि ६ ढारसदस ७ दस ८ तओअ॥२४७॥ पणसयरि ९ सयरि १० पणस-ट्ठि ११ For Private And Personal Use Only

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