Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
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( ६७ )
पश्चाऽऽश्रवविरमणं, पञ्चेन्द्रियनिग्रहः कषायजयः । दण्डत्रिकाद्विरतिः सप्तदशधा संयमोऽथवा ।। २९४ ॥
पुढवि १ ग २ अगणि २ मारुअ ४, वणसह ५ बि ६ ति ७ चउ ८ पणिदि ९ अजीवे १० ।। पेहु ११ पेह १२ पजण १३, परिठवण १४ मणो १२ वई १३ काए १७ ॥ २९५ ॥
पृथ्व्युदकाग्निमारुत-वनस्पतिद्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रियाऽजीवाः । प्रेक्षोत्प्रेक्षाप्रमार्जन - परिष्ठापनमनोवाक्कायाः
।। २९५ ॥
दुपडिलेहिअ दूसं, अद्धाणाई विचित्तगिम्हति ॥ fates yearni, कालिअनिज्जत्तिकोस
जइ तेसिं जीवाणं, तत्थगयाणं च सोणिअं हुज्जा | पीलिजंते धणिअं गलिज्ज तं अक्खरंफुसिउं
"
॥ १ ॥
दाणं सीलं च तवो - भावो एवं चउविहोधम्मो || सवजिणेहिं भणिओ, तहा दुहा सुअचरितेहिं ॥ २९६ ॥ दानं शीलं च तपो-भाव एवं चतुर्विधो धर्मः || सर्वजिनैर्भणित- स्तथा द्विधा श्रुतचारित्राभ्याम् ॥ २९६ ॥
प्रथमाऽन्तिमतीर्थेषु, ओघनियुक्तिभणितपरिमाणम् ॥ श्वेतवस्त्रमितरेषां वर्णप्रमाणैर्यथालब्धम्
॥ १ ॥
पुरिमंति मतित्थेसुं, ओहनिजुत्ती भणिअपरिमाणं ॥ सिअवत्थं इअराणं, वन्नपमाणेहिं जहलद्धं ॥ २९७ ॥
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।। २९७ ॥

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