Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 74
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६७ ) पश्चाऽऽश्रवविरमणं, पञ्चेन्द्रियनिग्रहः कषायजयः । दण्डत्रिकाद्विरतिः सप्तदशधा संयमोऽथवा ।। २९४ ॥ पुढवि १ ग २ अगणि २ मारुअ ४, वणसह ५ बि ६ ति ७ चउ ८ पणिदि ९ अजीवे १० ।। पेहु ११ पेह १२ पजण १३, परिठवण १४ मणो १२ वई १३ काए १७ ॥ २९५ ॥ पृथ्व्युदकाग्निमारुत-वनस्पतिद्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रियाऽजीवाः । प्रेक्षोत्प्रेक्षाप्रमार्जन - परिष्ठापनमनोवाक्कायाः ।। २९५ ॥ दुपडिलेहिअ दूसं, अद्धाणाई विचित्तगिम्हति ॥ fates yearni, कालिअनिज्जत्तिकोस जइ तेसिं जीवाणं, तत्थगयाणं च सोणिअं हुज्जा | पीलिजंते धणिअं गलिज्ज तं अक्खरंफुसिउं " ॥ १ ॥ दाणं सीलं च तवो - भावो एवं चउविहोधम्मो || सवजिणेहिं भणिओ, तहा दुहा सुअचरितेहिं ॥ २९६ ॥ दानं शीलं च तपो-भाव एवं चतुर्विधो धर्मः || सर्वजिनैर्भणित- स्तथा द्विधा श्रुतचारित्राभ्याम् ॥ २९६ ॥ प्रथमाऽन्तिमतीर्थेषु, ओघनियुक्तिभणितपरिमाणम् ॥ श्वेतवस्त्रमितरेषां वर्णप्रमाणैर्यथालब्धम् ॥ १ ॥ पुरिमंति मतित्थेसुं, ओहनिजुत्ती भणिअपरिमाणं ॥ सिअवत्थं इअराणं, वन्नपमाणेहिं जहलद्धं ॥ २९७ ॥ For Private And Personal Use Only ।। २९७ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112