Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 57
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५०) सेअंस नंद सुजा, संखो उसहस्स नेमिमाईणं । सढिसुभद्दा महसु - व्वया सुनंदा य सुलसा य ॥ २९८ ॥ गणहरपवत्तिणीओ, पढमा भणिआ जिणाण सव्वेसिं । सड्ढा सड्डी अ पुणो- चउण्ह सेसाणमपसिद्धा ॥ २१९ ॥ श्रेयांस नंद सुद्योत - शंखा ॠषभने म्यादीनाम् । श्राद्धी सुभद्रा महासु-व्रता सुनन्दा च सुलसा च ॥२१८॥ गणघर प्रवर्त्तिन्यः, प्रथमा भणिता जिनानां सर्वेषाम् । श्राद्धः श्राद्धश्च पुन-चतुर्णां शेषाणामप्रसिद्धाः ॥ २१९ ॥ भरह १ सगर २ मिअसेणा, अ ३ मित्तविरिओ ४ अ सच्चविरिओ ५ अ || तह अजिअसेणराया ६ दानविरिय ७ मघवराया ९ य ।। २२० ।। जुद्धविर ९ सीमंधर १०, तिविट्ठविण्हू ११ दुविट्टु १२ अ सयंभू १३ ॥ पुरिमुत्तमविण्हू १४ पुरि-ससीहु १५ कोणालयनिवो अ १६ ॥ २२१ ॥ निव कुबेर १७ सुभूमा १८ - जिअ १९ विजयमहो अ २० चक्किहरिसेणो २१ || कण्हो २२ पसेणई २३ से - णिओ २४ य जिणभत्तरायाणो ॥ २२२ ॥ - भरतः सगरोमृगसेन च मित्रवीर्यश्च सत्यवीर्यश्च ॥ तथाऽजितसेनराजो - दानवीर्योमघवराजश्च For Private And Personal Use Only ॥ २२० ॥

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