Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 59
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५२ ) षण्मुखः पातालः किन्नरो, गरुडोगन्धर्वस्तथा च यक्षेन्द्रः ॥ सकुबेरोवरुणो भ्रकुटि-गोमेधःपा.मातङ्गः ॥२२६ ॥ देवीओचकेसरि १, अजिया २ दुरिआरि ३ कालि ४ महाकाली ५ ॥ अच्चुअ६ संता ७ जाला ८, सुतारया ९ सोग १० सिरिवच्छा ११ ॥ २२७ ॥ पवरा १२ विजयं १३ कुस १४ प-नइत्ति १५ निव्वाणि १६ अच्चुया १७ धरणी १८॥ वइरु १९ दृदत्त २० गंधा-रि २१ अंब २२ पउमावई २३ सिद्धा २४ ॥२२८॥ देव्यश्चक्रेश्वर्यजिता, दुरितारिः कालीमहाकाली ॥ अच्युता शान्ता ज्वाला, सुतारकाऽशोका श्रीवत्सा ॥२२७॥ प्रवरा विजयाऽङ्कुशा, प्रज्ञप्ति निर्वाण्यच्युता धरणी ॥ वैरोट्या दत्तागान्धा-र्यम्बा पद्मावती सिद्धा ॥२२८ ।। चुलसीई १ पण नवई २, विहियसयं ३ सोलहियसयं च ४ सयं ५॥ सगहियसउ ६ पण नवई ७, तिणवइ ८ ठासी ९ गसि १० छसयरी ११ ॥ २२९ ॥ छावट्ठी १२ सगवन्ना १३, पन्न १४ तिचत्ता १५ छतीस १६ पण तीसा १७ ॥ तित्तीस १८ हावीसा, १९ ठार २० सतरि २१ गार २२ दस २३ नवय २४ ॥ २३० ॥ गण गणहरसंख इमा, वीरस्स इगारगणहरा नवरं ॥ चउदससया दुवन्ना, सबके गणहरा हुंति ॥ २३१ ॥ For Private And Personal Use Only

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