Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४१ ) छ दुमासिअ दु दिवड्डय-मासिअ बारस तहेगमासी अ । बावत्तरद्धमासिअ, पडिमा बारट्ठमेहिं च ॥ १७६ ॥ दो चउ दस खमणेहि, निरंतरं भद्दमाइपडिमतिगं । दुसयगुणतीस छट्ठा, पारणया तिसयगुणवत्रा ॥ १७७ ॥ व्रतदिनमेकं पूर्ण, पाण्मासिकं द्वितीयं पञ्चदिनोनम् । नव चातुर्मासिकानि, द्वेत्रिमासिके सार्द्धद्विमासिके द्वे ॥ १७५ ॥ षड्विमासिकानि द्वे सार्द्ध-मासिके द्वादश तथैकमासिकानि । द्विसप्ततिरर्द्धमासिकानि, प्रतिमाद्वादशाष्टमैश्च ॥ १७६ ॥ द्विचतुर्दशक्षपणै-निरन्तरं भद्रादिप्रतिमात्रिकम् । द्विशतैकोनत्रिंशच्छष्टानि, पारणकानि त्रिशतैकोनपञ्चाशत् ।१७७। वीरु १ सहाण २ पमाओ, अंतमुहत्तं तहेव होरत्तं । उवसग्गा पासस्स य, वीरस्स य न उण सेसाणं ॥ १७८ ॥ वीरर्षभयोः प्रमादो-ऽन्तर्मुहूर्तं तथैवाहोरात्रम् । उपसर्गाः पार्श्वस्य, वीरस्य च न पुनः शेषाणाम् ॥ १७८ ॥ फग्गुणिगारसि किण्हा, सुद्धा एगारसी अ पोसस्स । कत्तियबहुला पंचमि, पोसस्स चउद्दसी धवला ॥ १७९ ।। चित्ते गारसि पुन्निम, तह फग्गुणकिन्हछद्विसत्तमिआ । सुद्धा कत्तिअतइआ, पोसंमि चउद्दसी बहुला ॥ १८० ॥ माहेऽमावसि सिअबिअ, पोसे मासंमि धवलछट्ठी अ। वइसाहसामचउदसि, पोसे पुन्निम नवमि सुद्धा ॥ १८१॥ For Private And Personal Use Only

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