Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४० ) आरियमणारिएसुं, पढमस्स य नेमिपासचरिमाणं । सेसाण आरिएसुं, छउमत्थत्ते विहारो अ आर्याsनार्येषु, प्रथमस्य च नेमिपार्श्वचरमाणाम् । शेषाणामार्येषु, छद्मस्थत्वे विहार ॥ १७१ ॥ वाससहस्सं १ बारस २, चउदस ३ अट्ठार ४ वीस ५ वरिसाई । मासा छ ६ नव ७ तिन्नि अ ८, चउ ९ तिग १० दुग ११ मिक्कग १२ दुगं च १३ ॥ १७२ ॥ ॥ १७१ ॥ ति १४ दु १५ कग १६ सोलसगं १७, वासा तिनि अ १८ तहेव होरत्तं १९ । मासेकारस २० नवगं २१, चउपन्न दिणाइ २२ चुलसीई || २३ || १७३ ॥ -- पक्खहियसढबारस २४. वासा छउमत्थकालपरिमाणं । उग्गं च तवोकम्मं, विसेसओ वद्धमाणस्स || १७४ ॥ वर्षसहस्रं द्वादश- चतुर्दशाऽष्टादश विंशतिवर्षाणि । मासाः षट् नव त्रयश्च, चतुस्त्रिकद्विकमेकद्विकं च ॥ १७२ ॥ त्रिद्वकानिषोडश वर्षाणि त्रीणि च तथैवाहोरात्रम | मासैकादशनवकं, चतुष्पञ्चाशद्दिनान्यशीतिः ॥ १७३ ॥ पक्षाधिकसार्द्धद्वादश वर्षाणिच्छद्मस्थकालपरिमाणम् । उग्रं च तपः कर्म, विशेषतो वर्द्धमानस्य ॥ १७४ ॥ वयदिणमेगं पुन्नं, छमासिअं बीअयं पणदिणूणं । नव चउमासिअ दुतिमा - सिअ अड्डाइजमासिआ दुनि । १७५ । For Private And Personal Use Only

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