Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
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( ३५ ) चउत्थि १३ चउदसिअ १४ तेरसीआ १५ ॥ १४६ ॥ चउदसि १६ पंचमि १७ गारसि १९, बारसि अ २० नवमि २१ छट्ठी अ २२ । एगारसि २३ दसमि २४ तिहि, वयंमि उड्डुरासिपुत्वं व ॥ १४७॥ अष्टमी नवमी पूर्णिमा, द्वादशी नवमी त्रयोदशी त्रिके षष्ठी। द्वादशी त्रयोदशी पञ्चदशी, चतुर्थी चतुर्दशी च त्रयोदशी॥१४६॥ चतुर्दशी पञ्चम्येकादशी, द्वादशी च नवमी षष्ठी च । एकादशी दशमी तिथि-व्रत उडुराशयः पूर्वमिव ॥ १४७ ॥ कुमरत्ते पढमवए, वसुपुज्जो मल्लिनेमि पासो य । वीरो वि अ पवइया, सेसा पच्छिमवयंमि निवा ॥ १४८ ॥ कुमरत्वे प्रथमवयसि, वासुपूज्योमल्लिनेमीपार्श्वश्च । वीरोऽपि च प्रव्रजिताः, शेषाः पश्चिमवयसि नृपाः ॥ १४८ ।। सुमइस्म निच्चभत्तं, मल्लीपासाण अट्ठमो आसि । वसुपुजस्स चउत्थं, वयंमि सेसाण छट्ठतवो ॥१४९ ॥ सुमतेर्नित्यभक्तं, मल्लीपार्श्वयोरष्टममासीत् । वासुपूज्यस्य चतुर्थ, व्रते शेषाणां पष्ठतपः ॥ १४९ ॥ सिबिया सुदंसणा सु-प्पभा य सिद्धत्थ अत्थसिद्धा य । अभयंकरा य निव्वुई-करा मणोहर मणोरमिया ॥ १५० ॥ सूरपहा सुक्कपहा, विमलपहा पुहवि देवदिना य । सागरदत्ता तह ना-गदत्त सबट्ट विजया य ॥ १५१ ॥
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