Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६ ) मणंतर १४ धम्मो १५, संती १६ कुंथू १६ अरो अ १८ मल्ली अ १९ । मुणिसुइय २० नमि २१ नेमी २२, पासो २३ वीरो २४ अ जिणनाम ॥ १०७ ॥ ऋषभोऽजितः संभवो, -ऽभिनन्दनः सुमतिः सुप्रभः [ पद्मप्रभः ] सुपार्श्वः । चन्द्रप्रभः सुविधिः शीतलः, श्रेयांसो वासुपूज्यश्च ॥ १०६ ॥ विमलोऽनन्तजिद्धर्मः, शान्तिः कुन्थुररश्च मलिच । मुनिसुव्रतोनमिनेमी, पार्श्वो वीरो जिननामानि ॥ १०७ ॥ वयधुरवहणा उसो, उसहाइमसुविणलंछणाओ अ १ । रागाइ अजिअ अजिओ, न जिया अक्खेसु पिउणंबा २ ।। १०८ । व्रतधुरवहनाद्वृषभ-ऋषभादिमस्वनलाञ्छनाच १ । रागाद्यजितोऽजितो-न जिताऽक्षेषु पित्राऽम्बा २ ।। १०८ ।। सुह अइसयसंभवओ, तइओ भुवि पउरसस्त संभवओ ३ । अभिनंदिज्जइ तुरिओ, हरीहि हरिणा सया गन्भे ४ || १०९॥ शुभाऽतिशयसंभव- स्तृतीयोभुवि प्रचुरसस्यसंभवतः ३ । अभिनन्द्यते तुरीयो- हरिभिर्हरिणा सदा गर्भे ४ ॥ १०९ ॥ सयमवि सुहमहभावा, अंबाइविवायभंगओ सुमई ५ । अमलत्ता पउमपहो, पउमपहाअंकसिज्जडोहलओ ६ ।। ११० ॥ स्वयमपि सुमतेर्भावा-दम्बा या विवादभङ्गतः सुमति: ५ । अमलत्त्वात्पद्मप्रभः, पद्मप्रभाऽङ्कुशय्यादोहदतः ६ ॥ ११० ॥ For Private And Personal Use Only

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