Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २५ ) संवट्ट १ मेह २ आयं - सगा य ३ भिङ्गार ४ तालियंटा य५ । चामर ६ - जोई ७ रक्खं ८, करेंति एअं कुमारीओ । १०२ । संवर्त्तमेघादर्शकां-च भृङ्गार तालवृन्तञ्च । चामरं ज्योती रक्षां कुर्वन्त्येतानि कुमार्यः ।। २ ।। १०२ ।। भुवणिंद वीस २० वंतर - पहू दुतीसं च ३२ चंदसूरा दो २ । कप्पसुरिंदा दस १० इअ, हरिचउसट्ठिति जिणजम्मे । १०३ | भुवनेन्द्राविंशतिर्व्यन्तर- द्वात्रिंशञ्च चन्द्रसूर्यौ द्वौ । कल्पसुरेन्द्रादशेति, हरयश्चतुःषष्टिर्यन्ति जिनजन्मनि ॥ १०३॥ पडिरूवपंचरूवं- क ठवणण्हाणंगरागपूयाई । वत्थाहरणअमयरस, - अट्ठाहियमाड़ हरिकिच्चं ॥ १०४ ॥ प्रतिरूपपञ्चरूपाऽङ्कस्थापनाङ्गरागपूजादि । वस्त्राभरणाऽमृतरसा - प्राह्निकमादि हरिकृत्यम् ॥ १०४ ॥ गोयमगुत्ता हरिवं- स संभवा नेमिसुवया दो वि । कासवगोत्ता इक्खा - गुवंसजा सेस बावीसं ॥ १०५ ॥ गौतमगोत्रौ हरिवंश-संभवौ नेमिसुतौ द्वावपि । काश्यपगोत्रा ईक्ष्वा - कुवंशजाः शेषा द्वाविंशतिः ॥ १०५ ॥ उसो १ अजिओ २ संभव ३, अभिनंदण ४ सुमइ ५ सुप्पह ६ सुपासो ७ | चंदपह ८ सिजंसो ११ वासुपुजो अ १२ सुविहि ९ ।। १०६ ॥ सीयल १०, विमल १३ For Private And Personal Use Only

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