Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२ ) अतरशतं षट्चत्वारिंशत् , षोडशसप्तत्रीणि पल्यपादत्रिकम् । पल्यस्यैकपादो-वर्षाणां कोटिसहस्रश्च ॥ ८९ ॥ तिसु चुलसिसहस्सहिया, १ पणसट्टि २ इगार पंच लक्खा य ३ । चुलसीसहसा १ तो स-दृदुसय २ पासस्स अरसेसं ३ ॥९० ॥ ( जन्मारकशेषकालः ) त्रिषु चतुरशीतिसहस्राधिकाः, पञ्चषष्टिरेकादश पञ्चलक्षाश्च । चतुरशीतिसहस्राणि ततः, सार्द्धद्विशते पार्श्वस्यारशेषम् ॥ ९० ॥ दुसु कोसला १-२ कुणाला ३, दुसु कोसल ४-५ वच्छ कासि ७ पुबो अ ८ । सुन्न ९ मलय १० सुन्नं ११ गा १२, पंचाला १३ कोसला १४ सुन्नं १५ ॥ ९१ ॥ तिसु कुरु १८ विदेह १९ मगहा २०, विदेह २१ कोसट्ट २२ कासि २३ तह पुन्बो २४। देसा इमे जिणाणं, जम्मस्स इमाओ नयरीओ ॥ ९२ ॥ द्वयोः कोशलाकुणालौ, द्वयोः कोशला वच्छः काशी पूर्वश्च । शून्यमलयशून्याङ्गाः, पञ्चालाः कोशलाः शून्यम् ॥ ९१ ॥ त्रिषु कुरवो विदेहमगधा-विदेहकुशार्ताःकाशी तथा पूर्वः । देशा इमे जिनानां, जन्मन इमा नगर्यः ॥ ९२ ॥ इक्खागभूमि १ उज्झा २, सावत्थी ३दोसु उज्झ ४-५ कोसंबी ६ । वाणारसि ७ चंदपुरी ८, कायंदी ९ भदिलपुरं १० च ।। ९३ सीहपुर ११ चंप १२ कंपि-ल्ल १३ उज्झ १४ For Private And Personal Use Only

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