Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सागरकोटाकोट्य-श्चतुनिद्वथेकसमद्विचतुःसहस्रोना। वर्षसहस्रैकविशति-रेकविंशतिः क्रमात् षडरकमानम् ॥८५।। जिनाऽरकाः॥२५॥ जंमाउ इगुणनउई-पक्खनियाउयमियं अरयसेसं । पुरिमंतिमाण नेयं, तेण हिअमिमं तु सेसाणं ॥८६॥ जन्मत एकोननवति-पक्षनिजायुर्मितमर्कशेषम् । प्रथमान्तिमयोर्तेय, तेनाऽधिकमिदं तु शेषाणाम् ।। ८६ ।। अजियस्स अरयकोडी-लक्खा पन्नास १ वीस २ दस ३ एगा ४ । कोडिसहसदस ५ एगो ६, कोडिसयं ७ कोडिदस ८ एगा ॥ ८७ ॥ अजितस्यारककोटी-लक्षाःपञ्चाशदिशतिर्दशैका । कोटिसहस्रदशैका, कोटिशतं कोटिदशैका ॥ ८७ ॥ बायालसहस्सूणं, इअ नवगे अट्ठगे पुणो इत्तो। पणसहि लक्खचुलसी, सहसहि होइ वरिसाणं ॥८८॥ द्विचत्वारिंशत्सहस्रोन-मितिनवकेऽष्टके पुनरितः । पञ्चषष्टिलक्षचतुरशिति-सहस्राधिकं भवति वर्षाणाम् ॥८८॥ अयरसयं १ छायाला २, सोलस ३ सग ४ तिन्नि ५ पलिअपायतिगं ६ । पलियस्स एगुपाओ ७, वरिसाणं कोडिसहसो य ८ ॥ ८९॥ For Private And Personal Use Only

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