Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छ १६ प्पण १७ अड १८ सत्त १९ ? य २०, अट्ठ २१ ४ २२ छ २३ सत्त २४ हुंतिगब्भदिणा । इत्तो उसहाइ जिणा-ण जम्ममासाइ वुच्छामि ।। ७७ ॥ षट्पश्चाऽष्ट सप्ताऽष्ट च, अष्टाऽष्टषट् सप्त भवन्ति गर्भदिनानि । इतोवृषभादिजिनानां, जन्ममासादि वक्ष्यामि ॥ ७७ ॥ चित्तबहुलट्ठमी १ सिअ-माहट्ठमि २ मग्गचउदसी ३ माहे । सिबिअ ४ वइसाहडमि ५, कत्तिअगे कसिण बारसिआ।७८) चैत्रबहुलाऽष्टमी श्वेत-माघाष्टमी मार्गचतुर्दशी माघे । सितद्वितीया वैशाखाष्टमी, कार्तिकके कृष्णद्वादशिका ॥७८॥ जिट्टसिअ७ पोसकसिणा ८, य बारसी मग्गपंचमी चेव । कसिणा य माहबारसि १०, फग्गुणबारसि ११ चउद्दसिआ १२॥ ज्येष्ठसिता पौषकृष्णा, च द्वादशीमार्गपश्चमी चैव । कृष्णाच माघद्वादशी, फाल्गुनद्वादशी चतुर्दशिका ॥ ७९ ॥ माहस्स सुद्धतइया, १३ तह वइसाहम्मि तेरसी कसिणा। १४ माहसिअतइय १५ जिटे, कसिणा तेरसि १६ विसाहचउद्दसिआ १७ ॥ ८० ॥ माघस्य शुद्धतृतीया, तथा वैशाखे त्रयोदशी कृष्णा । माघसिततृतीया ज्येष्ठे, कृष्णा त्रयोदशी वैशाखचतुईशिका ८० For Private And Personal Use Only

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