Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 2
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरसाढा १ रोहिणि २, मिअसीस ३ पुणवसू ४ महा ५ चित्ता ६। वइसाह ७ णुराहा ८ मू-ल ९ पुद्ध १० सवणो ११ सयभिसा य १२ ॥ ६५ ॥ उत्तरभद्दव १३ रेवइ १४, पुस्स १५ भरणि १६ कत्तिया य १७ रेवइ अ १८। अस्सिणि १९ सवणो २० अस्सिणि २१, चित्त २२ विसाहु २३ त्तरा २४ रिक्वा ॥६६॥ च्यवननक्षत्राणि । उत्तराषाढा रोहिणी, मृगपीर्शपुनर्वसू मघा चित्रा । विशाखाऽनुराधामूलं, पूर्वाश्रवणशतभिषा च ॥६५ ।। उत्तराभाद्रपदोरेवती, पुष्योभरणी कृत्तिका च रेवती च । अश्विनी श्रवणमश्विनी, चित्रा विशाखोत्तरा ऋक्षाः ॥६६॥ धणु (१) वसह (२) मिहुण (३) मिहुणो (४), सीहो (५) कन्ना (६) तुला (७) अली (८) चेव । धणु (९) धणु (१०) मयरो (११) कुंभो (१२), दुसु मीणो (१३-१४) कक्कडो (१५) मेसो (१६) ॥ ६७ ॥ विस (१७) मीण १८ मेस १९ मयरो २०, मेसो २१ कन्ना २२ तुला २३ य कन्ना २४ य । इअ चवण रिक्खरासी, जम्मेदिक्खाएँ नाणे वि ।। ६८ ॥ च्यवनराशयः ॥ धनवृषभौ मिथुनमिथुनौ, सिंहः कन्या तुला अलिश्चैव । धनधनमकराः कुंभो-द्वयोर्मीनः कर्कटो मेपः ॥६७ ॥ वृषमीनमेषमकरा-मेषः कन्या तुला च कन्या च । इमे च्यवनक्षराशयो-जन्मनि दीक्षायां ज्ञानेऽपि ॥ ६८ ॥ For Private And Personal Use Only

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